पोरा तिहार: छत्तीसगढ़ का पोरा तिहार (या पोला पर्व) 2025 में कब है?
पोरा तिहार का महत्व:-
छत्तीसगढ़ का पोरा तिहार (या पोला पर्व) एक अद्वितीय और अत्यंत महत्वपूर्ण कृषि त्योहार है, जिसमें आदिवासी ग्रामीण संस्कृति की जड़ों की सुगंध और किसान जीवन की सादगी झलकती है। यह त्योहार मुख्य रूप से किसानों और पशुपालकों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें बैलों और मिट्टी से बने नंदी- बैल, कृषि उपकरण, तथा धरती माता की पूजा की जाती है। ग्रामीण जीवन, खेती, पशुपालन और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का यह अद्भुत उत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी रौनक कायम रखे हुए है।
पोरा तिहार का इतिहास
परा- तिहार की जड़ेें छत्तीसगढ़ की प्राचीन कृषि आधारित संस्कृति में हैं। यह त्योहार भादो महीने की अमावस्या, या आमतौर पर अगस्त-सितंबर के मध्य मनाया जाता है। इसे ‘पोरा’ नाम इसलिए मिला क्योंकि ‘पोरा’ का अर्थ होता है- बीज। इस दिन किसान अपने बैलों, खेती की ज़मीन और औज़ारों के प्रति आभार प्रकट करते हैं, ताकि आने वाली फसल अच्छी हो।
महत्व के दृष्टिकोण से, यह त्योहार:
कृषि-समाज की कृतज्ञता: किसान अपने बैलों, धरती और अन्न के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
पशु-पूजन: बैलों को सजाकर उनकी पूजा होती है। उन्हें अच्छे भोजन, चारा, और विश्राम दिया जाता है।
मिट्टी के खिलौने: बच्चे मिट्टी के बैल, जांता, चक्की, चूल्हा आदि में सजावट और खेल में भाग लेते हैं[1]।
नवीनता का प्रतीक: यह त्योहार बताता है कि कैसे परंपराएँ बच्चों में प्रकृति, फसल और मेहनत के महत्व को संस्कार के रूप में रोपित करती हैं।
कैसे मनाया जाता है पोरा तिहार
त्योहार की तिथि और तैयारी
2025 में पोरा तिहार 22 अगस्त को पड़ सकता है (तारीख स्थानीय पंचांग पर निर्भर करती है)। इस दिन की तैयारी गावों, शहर और मुख्यमंत्री निवास तक विशेष रूप से की जाती है। इसके तीन दिन बाद तीजा तिहार भी मनाया जाता है
पूजा और परंपराएँ
बैलों का श्रंगार: किसानों द्वारा सुबह ही बैलों को नहलाया, सजाया और रंग-बिरंगी वस्तुओं से सुसज्जित किया जाता है। उनके गले में घंटी, रंगीन कपड़े बांधे जाते हैं, सींगों पर हल्दी, चन्दन और सिन्दूर लगाई जाती है।
मिट्टी के नंदी-बैल: बाजार में मिट्टी के बैल, चक्की, जांता, चूल्हा, बसुली (कुल्हाड़ी) आदि बिकते हैं। बच्चे और बड़े इन्हें खरीदकर घर लाते हैं।
पूजन विधि: घर आंगन या गाँव के सार्वजनिक स्थल पर बैलों, मिट्टी के बैलों और कृषि औजारों की पूजा की जाती है।
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इन बातों का भी ध्यान रखा जाता है
इस दिन बैलों से कोई काम नहीं करवाया जाता, उन्हें पूरा आराम दिया जाता है। और महिलाएँ व परिवार के सभी लोग, बैलों, मिट्टी के खिलौनों व औजारों की पूजा में आगे रहते हैं। साथ ही समुदाय में मेलमिलाप, बच्चों में आनंद और परंपरा का रंग पूरे गांव में बिखर जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ
पोरा तिहार का संबंध छत्तीसगढ़ की कृषि सभ्यता, पशुपालन और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान से जुड़ा है। यह त्यौहार सामाजिक सम्मिलन, पारिवारिक एकता, बच्चों में रचनात्मकता हेतु प्रेरणा का स्रोत भी है। मुख्य मान्यता है कि इस दिन धरती माता और बैल (नंदी) को संतुष्ट कर आगामी फसल के लिए आशिष मांगा जाता है।
बदलते दौर में पोरा तिहार
आधुनिकता के बावजूद, नए जमाने के युवा भी इस परंपरा से जुड़े रहने लगे हैं। बाजार में अब तो सजावटी मिट्टी के खिलौनों की विशेष मांग रहती है। सीएम हाउस हो या गांव का चौपाल, सब जगह उत्साह एक जैसा दिखता है — यही इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती है।
पोरा तिहार के रोचक पहलू
- त्योहार के दिन बैलों को गांवों की गलियों में घुमाया जाता है, जिससे बच्चों में बड़ा उत्साह रहता है।
- बैलों और मिट्टी के खिलौनों की दौड़, पारंपरिक गीत और खेल, मेलमिलाप, सभी में खुशी का माहौल होता है।
- सामूहिक पूजा के बाद prasad का वितरण होता है।
- त्योहार के समय छत्तीसगढ़ की पारंपरिक लोककला, गीत और नृत्य देखने को मिलते हैं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. 2025 में पोरा तिहार कब है?
Q2. मिट्टी के खिलौनों का क्या महत्व है?
Q3. पोरा तिहार कब और कहाँ मनाया जाता है?
Conclusion:
पोरा तिहार छत्तीसगढ़ की ग्रामीण समृद्धि, सांस्कृतिक आत्मा और प्रकृति से सामंजस्य का अनूठा पर्व है। यह त्योहार आने वाली पीढ़ियों हेतु शिक्षा, संस्कार और कृतज्ञता का प्रतीक भी है। यदि आप छत्तीसगढ़ में हैं, तो इस वर्ष ज़रूर स्थानीय पोरा तिहार का हिस्सा बनें और ग्रामीण छवि, व्यंजन, परंपरा और आनन्द का अनुभव लें।
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