Trump–Putin Alaska Summit 2025: शांति की उम्मीद या सिर्फ़ राजनीतिक दिखावा?
Trump–Putin Alaska Summit: क्या अमेरिका-रूस रिश्तों में नया मोड़?
15 अगस्त 2025 को अलास्का की ठंडी वादियों में वो ऐतिहासिक लम्हा आया, जब पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका और रूस के बीच होने वाली मुलाकात पर टिकी हुई थीं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहली बार आमने-सामने आए और उम्मीद की जा रही थी कि यूक्रेन युद्ध (BBC Hindi) की दिशा बदल सकती है।
लेकिन असली सवाल यह है—क्या यह समिट शांति का रास्ता खोलेगी या यह सिर्फ़ कूटनीतिक दिखावा (Diplomatic Showmanship) रह जाएगी?
The Atmosphere: रेड कार्पेट, फाइटर जेट्स और “The Beast”
Alaska Summit के Joint Base Elmendorf–Richardson (Anchorage) पर पुतिन का स्वागत किसी हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर जैसा रहा। रेड कार्पेट बिछाया गया, आसमान में B-2 स्टेल्थ बॉम्बर और F-35 फाइटर जेट्स की फ्लाई-पास्ट हुई और सबसे दिलचस्प यह कि पुतिन को ट्रंप की राष्ट्रपति कार “The Beast” में बेस तक लाया गया।
स्पष्ट था कि ट्रंप ने इस मुलाकात को एक वैश्विक शोकेस बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
Behind Closed Doors: 3 घंटे की गुप्त बातचीत
Alaska Summit करीब तीन घंटे तक दोनों नेताओं ने बंद कमरे में बातचीत की। दुनिया को उम्मीद थी कि इस मुलाकात से Ceasefire (Reuters) का रास्ता निकलेगा। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह उम्मीद पूरी नहीं हुई।
सिर्फ़ बारह मिनट की बयानबाज़ी हुई, पत्रकारों को सवाल पूछने का अवसर नहीं मिला और दोनों नेताओं ने यही कहा कि “बातचीत सकारात्मक रही।” यानी असली नतीजे अब भी रहस्य बने हुए हैं।
What Was Discussed? एजेंडा क्या रहा?
Alaska Summit में यूक्रेन युद्ध चर्चा का मुख्य विषय रहा। ट्रंप ने कहा, “There’s no deal until there’s a deal,” यानी जब तक यूक्रेन सहमत न हो, कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने यह भी इशारा किया कि वे यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं से आगे बात करेंगे।
दूसरी ओर पुतिन ने फिर से वही पुराना रुख अपनाया। उनका कहना था कि NATO विस्तार (The Guardian) ही युद्ध का असली कारण है। रूस को सुरक्षा गारंटी चाहिए और यूक्रेन का NATO में शामिल होना उनके लिए नामंज़ूर है। संकेत मिले हैं कि अगली बैठक मॉस्को में हो सकती है, लेकिन कोई तारीख़ तय नहीं हुई।
Symbolism vs Reality: असली नतीजे कहाँ?
Alaska Summit में अगर व्यावहारिक नतीजों की बात करें तो इस समिट से कोई ठोस बदलाव नहीं आया। न युद्धविराम हुआ, न कोई लिखित समझौता और न ही कोई समयसीमा तय हुई। लेकिन प्रतीकात्मक रूप से यह मुलाकात अहम रही।
पुतिन ने इसे अपनी छवि मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल किया। संदेश गया कि रूस अब अलग-थलग नहीं है और अमेरिका खुद उससे बातचीत कर रहा है। पुतिन को “Equal Global Power” की तरह पेश किया गया। AP News ने भी इसे उनकी “PR Victory” बताया।
Historical Context: क्यों अहम रही यह मुलाकात?
यह मुलाकात कई कारणों से ऐतिहासिक रही। पुतिन 2015 के बाद पहली बार अमेरिका आए। ट्रंप के 2024 में दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली सीधी भेंट थी। दिलचस्प यह भी है कि आख़िरी बार 2007 में अमेरिका और रूस के बीच समिट हुई थी। इसलिए यह केवल एक बैठक नहीं बल्कि इतिहास का हिस्सा भी है।

Global Reactions: दुनिया की प्रतिक्रियाएँ
इस समिट पर दुनियाभर से अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। यूरोपीय देशों को आशंका है कि ट्रंप कोई ऐसा समझौता न कर लें जो उनके लिए खतरनाक साबित हो। यूक्रेन में नाराज़गी है कि ज़ेलेंस्की को आमंत्रित नहीं किया गया। अमेरिकी विपक्ष का आरोप है कि ट्रंप ने ज़्यादा शोबाज़ी की लेकिन ठोस नतीजे नहीं दिए। वहीं अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक इस मुलाकात को “PR Victory for Putin” करार दे रहे हैं।
Future Scenarios: आगे क्या?
भविष्य की दिशा अब भी अस्पष्ट है। ट्रंप ने कहा कि वे पुतिन और ज़ेलेंस्की को एक साथ बैठाने की कोशिश करेंगे। चीन भी एक अहम फैक्टर है क्योंकि ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि वे चीन पर नए टैरिफ़ रोक रहे हैं, चूँकि चीन रूस से तेल खरीद रहा है। कुल मिलाकर शांति की राह अब भी लंबी है। यह समिट एक शुरुआत भर है, मंज़िल नहीं।
Analysis: क्या बदलेंगे यूक्रेन युद्ध के समीकरण?
Alaska Summit: इस मुलाकात से यह साफ हुआ कि पुतिन अपने पुराने रुख पर अडिग हैं, जबकि ट्रंप खुद को एक Deal Maker के रूप में दिखाना चाहते हैं। अगर आने वाले समय में किसी “Land Swap” या “Security Guarantee” जैसी डील पर सहमति बनती है, तो यह न केवल यूक्रेन बल्कि यूरोप और पूरी दुनिया की राजनीति की दिशा बदल सकती है।
Conclusion: Summit of Symbolism
संक्षेप में कहा जाए तो अलास्का समिट शांति से अधिक राजनीतिक संदेश और शक्ति के प्रदर्शन का मंच साबित हुई। ट्रंप ने दिखाया कि वे Global Deal Maker हैं, जबकि पुतिन ने यह साबित करने की कोशिश की कि वे अब भी World Power हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आम लोग, खासकर यूक्रेन के नागरिक, अब भी युद्ध की मार झेल रहे हैं।
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